
मानव शरीर हो अथवा अभियंत्रित ऊतक (इंजीनियर्ड टिशु), दोनों ही स्थितियों में कोशिकाएँ बहुत ही विशिष्ट क्रम में रचित होती है। उदाहरण स्वरूप मांसपेशियों के तंतु-सूत्र (फाइबर) एक दूसरे के साथ समानांतर क्रम में व्यवस्थित होते हैं ताकि शारीरिक गतिविधि समन्वित हो सके, व्रण होने पर रक्त वाहिकाएं उसकी ओर उन्मुख होती हैं ताकि इसे भरा जा सके, इसी प्रकार आँख की कोशिकाएं मध्य से लेकर परिधि तक (रेडियली) व्यवस्थित होती हैं ताकि दृश्य प्रकाश रेटिना पर सटीक रूप से केंद्रित हो एवं दृष्टि स्पष्ट एवं सटीक हो। ऐसी सटीक स्थानिक (spatial) व्यवस्था के द्वारा ही ऊतक भली भांति कार्य करते हैं। कोशिकाओं की व्यवस्था ही प्रत्यक्षत: यह निर्धारित करती है कि एक ऊतक अपनी भूमिका को कितने प्रभावी रीति से संचालित करेगा, चाहे वह संकुचन हो, पोषक तत्वों का परिवहन हो, या संवेदन हो। परंतु इन जटिल प्रणालियों में कोशिकाएं अपनी सही स्थिति एवं अभिविन्यास को कैसे निर्धारित करती हैं?
प्राध्यापक अभिजीत मजुमदार के नेतृत्व में संपन्न हुआ भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई (आईआईटी मुंबई) का एक नवीन अध्ययन इस जिज्ञासा का हल देता है : कोशिकाएं उनके निकटत: सन्निहित तनाव जैसे कि अदृश्य यांत्रिक विन्यास-क्रमों (पैटर्न) का संवेदन कर सकती हैं एवं उन पर प्रतिक्रिया कर सकती हैं। सेल रिपोर्ट्स फिज़िकल साइंस नामक शोध पत्रिका में प्रकाशित उनके निष्कर्ष, कोशिकाओं द्वारा स्वयं को व्यवस्थित करने से संबंधित हमारे मौलिक ज्ञान को बढ़ाने के साथ-साथ, ऊतक अभियांत्रिकी, कैंसर अनुसंधान एवं घाव के भरने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। इस शोधपत्र को “सेल रिपोर्ट्स फिज़िकल साइंस प्रकाशित कुछ उत्तम जैव-भौतिकी अनुसंधानों के संग्रह” में स्थान दिया गया है।
दशकों तक वैज्ञानिकों का विश्वास था कि कोशिकाएं अपनी वृद्धि एवं दिशा निर्धारण हेतु मुख्यतः: वृद्धि कारकों या मॉर्फोजेन्स जैसे रासायनिक संकेतों पर निर्भर करती हैं। यद्यपि नव्यसा खोजों से ज्ञात हुआ है कि यांत्रिक संकेत (mechanical signals) भी यहाँ उतने ही महत्वपूर्ण हैं। कोशिकाएं अपने चारों ओर होने वाली दृढ़ता का अनुभव कर सकती हैं, लघु तनावों का संवेदन कर सकती हैं, साथ ही आकार में स्वयं से लघु आकार की सतह संरचनाओं पर प्रतिक्रिया भी दे सकती हैं।
“जीवित ऊतकों में सामान्यतः यांत्रिक विषमांगताएं (mechanical inhomogeneities) होती हैं, जिन्हें ट्यूमर, व्रण रोपण या विकसित हो रहे अंगों में देखा जा सकता है। किन्तु कोशिकाएं इन भौतिक संकेतों को कैसे ग्रहण करती हैं एवं इन पर क्या प्रतिक्रिया करती हैं, इस बात को हम अब तक पूर्ण रूप से नहीं समझ सके हैं,” प्रा. मजुमदार बताते हैं।
शोधकर्ताओं का लक्ष्य यह जानना था कि ऊतक वृद्धि, चोट या ट्यूमर निर्माण जैसी शारीरिक प्रक्रियाओं के समय प्राकृतिक रूप से आंतरिक तनाव कैसे विकसित होते हैं, एवं कोशिकाएं इन तनावों को किस प्रकार अनुभव करती हैं तथा उन पर क्या प्रतिक्रिया कर सकती हैं। इस हेतु अपने अध्ययन में शोधकर्ताओं ने एक कठोर वस्तु को एक मृदु पदार्थ के अंदर स्थापित किया, जिससे यांत्रिक विषमांगता का अनुकरण (मिमिक) किया जा सके।
“इन स्थितियों के अनुकरण (सिम्युलेशन) हेतु, हमने काँच की एक लघु एवं कठोर मणि (ग्लास बीड) को एक मृदु पॉलीएक्रिलामाइड हाइड्रो-जेल के अंदर स्थापित किया। शरीर के ऊतक के अंदर स्थित एक ट्यूमर का अनुकरण करती यह युक्ति, एक कठोर संरचना को अपने चारों ओर स्थित मृदु पदार्थ से घिरा हुआ दर्शाती है,” मुख्य लेखिका डॉ. अक्षदा खडपेकर बताती हैं।
जब इस हाइड्रो-जेल को पानी में रखा गया, तो केवल मणि वाले भाग को छोड़कर इसका प्रत्येक भाग फूलना (स्वेलिंग) प्रारंभ हो गया, क्योंकि कठोर मणि इसके फूलने या विस्तार का विरोध करती है। इससे एक पूर्व-तनाव प्रवणता (प्री-स्ट्रेन ग्रेडिएंट) अर्थात मणि के चारों ओर विविध तनाव विन्यास-क्रम की उत्पत्ति हुई।
जब मांसपेशी में बढ़ने वाली कोशिकाओं (प्रिकर्सर सेल) को हाइड्रो-जेल के साथ जोड़ा गया तो कोशिकाओं के संरेखण (aligned) को सही दिशा प्राप्त कराने में पूर्व-तनाव प्रवणता की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
“मणि के निकट स्थित कोशिकाओं ने पूर्व-तनाव प्रवणता का संसूचन किया एवं मध्य से परिघ की ओर (रेडियली) संरेखित हुईं। अध:स्तर (सब्सट्रेट) पर कोशिकाओं द्वारा आरोपित बल के माध्यम से यांत्रिक संकेत बाहर की ओर प्रसारित हुआ। इस संरेखण का विस्तार मणि से लगभग 1-2 मिमी (20-40 कोशिका लंबाई) तक था, जिससे अधिकतम दूरी तक सुनियोजित रचना प्राप्त हुई,” डॉ. खडपेकर कहती हैं।
यद्यपि एक मणि रहित मृदुल जेल पर संरेखण लगभग 0.35 मिमी तक सीमित था।
“कल्पना करें जैसे मणि के चारों ओर एक उथला गड्ढा हो, किन्तु इसमें गिरने के स्थान पर कोशिकाएं पूर्व-तनाव प्रवणता का अनुभव करती हैं तथा उसके अनुसार ही संरेखित होती हैं,” प्रा. मजुमदार बताते हैं।
कोशिकाओं का संरेखण रासायनिक कारकों के कारण नहीं था, यह सुनिश्चित करने के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ नियंत्रण प्रयोग किए। उन्होंने हाइड्रो-जेल के आस्तरण (कोटिंग) हेतु प्रयोग किए जाने वाले कोशिकाबाह्य आधात्री (एक्स्ट्रा सेलुलर मैट्रिक्स) के प्रोटीन्स के प्रकार को परिवर्तित करके अध:स्तर (सब्सट्रेट) की कठोरता को परिवर्तित किया। अध्ययन बताता है कि केवल नरम हाइड्रो-जेल पर ही कोशिकाएं संरेखित हो सकी एवं कठोर आस्तर वाले जेल ने इस प्रभाव को नहीं होने दिया। कोशिकाबाह्य आधात्री की कठोरता में परिवर्तन किये जाने पर कोशिकाओं में संरेखण प्रभाव का न दिखना, यह सिद्ध करता है कि कोशिकाओं का संरेखण एक जैव रासायनिक उत्पत्ति नहीं थी।
कोशिका संरेखण से संबंधित कारकों के और अधिक अध्ययन एवं अभ्यास हेतु शोधकर्ताओं ने यांत्रिकी अभियांत्रिकी विभाग, आईआईटी मुंबई के प्रा. पराग टंडैया का सहयोग लिया। उन्होंने फाइनाइट एलिमेंट सिम्युलेशन का प्रयोग करते हुए, फूलने वाले हाइड्रो- जेल के माध्यम से निर्मित हुई यांत्रिकी परिस्थितियों का प्रतिरूप (मॉडल) बनाया। प्रतिरूपों के माध्यम से इस बात की पुष्टि हुई कि जेल में उत्पन्न हुए तनाव क्षेत्र तथा प्रयोगों में देखे गए कोशिकाओं के संरेखण पैटर्न आपस में मेल खा रहे थे।
“यह महत्वपूर्ण कार्य था, क्योंकि आंतरिक पूर्व-तनाव क्षेत्रों जैसी सूक्ष्म जानकारी को प्रायोगिक रूप से मापने का कोई सीधा मार्ग नहीं था। प्रतिरूप-विधान (सिम्युलेशन) के बिना, हम कोशिकाओं की संवेदन प्रणाली के संबंध में अपनी परिकल्पना को आकार देने या परीक्षण करने में सक्षम नहीं हो सकते थे,” प्रा. टंडैया कहते हैं।
इस घटना की व्यापकता का अध्ययन करने हेतु, शोधकर्ताओं ने अपने प्रयोगों को मात्र गोलाकार मणिओं तक सीमित न रखते हुए, काँच की खोखली केश नलिकाओं (ग्लास कैपेलरी), काँच मणि तथा उनके संयोजनों तक विस्तार दिया। समस्त प्रक्रियाओं में कोशिकाएं अदृश्य बल पैटर्न के साथ चाप, तरंग अथवा सर्पिलाकार रूप निर्मित करते हुए संरेखित हुईं। शोधकर्ताओं ने विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं का परीक्षण किया तथा पाया कि कोशिकाओं का संरेखण इस बात पर निर्भर करता है कि वे कितना बल आरोपित कर सकती हैं एवं कितना तनाव धारण कर सकती हैं।
“कोशिकाएं न केवल अपने अध:स्तर के तनाव को अनुभव करती हैं, अपितु यह खोजते हुए कि अध:स्तर में सर्वाधिक तनाव किस दिशा में है, वे उसी दिशा में संरेखित हो जाती हैं। यह एक अत्यंत ही सटीक एवं बुद्धिमत्तापूर्ण प्रतिक्रिया है, और हमारा विश्वास है कि इस प्रकार के व्यवहार का प्रथम बार ही निरीक्षण किया गया है,” प्रा. टंडैया कहते हैं।
इन निष्कर्षों के आधार पर एक प्रतिरूप (मॉडल) निर्मित किया गया, जो कोशिकाओं के आकार, शक्ति एवं सतह की कठोरता के आधार पर उनके संरेखण संबंधी अनुमान कर सकता है।
यह खोज विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण परिणामों की संभावना लिए हुए है।
“ऊतक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में हम मृदु पदार्थों को आकार देकर जटिल संरचनाओं या उत्तेजना रहित कोशिका संगठन का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। कैंसर की स्थिति में, ट्यूमर की कठोरता से इस बात की सूचना प्राप्त कर सकते हैं कि निकटवर्ती कोशिकाओं को वह कैसे प्रभावित करेगा। पुनर्योजी चिकित्सा (रीजेनरेटिव थेरेपी) में, ऊतकों की कठोरता का समायोजन, वृद्ध या क्षतिग्रस्त ऊतकों की स्थितियों में स्वस्थ कोशिका क्रम को पुनर्स्थापित करने में सहायक हो सकता है,” डॉ. खडपेकर निष्कर्ष निकालती हैं।
वित्तीय सहायता : यह अध्ययन वैलकम ट्रस्ट - डीबीटी इंडिया अलाइंस, आईआईटी मुम्बई एवं डीएसटी-एसइआरबी इंडिया के सहयोग से वित्त पोषित किया गया है।